‘भविष्यवाणी करना भी अपने
आप में एक कला है’ गणित ज्योतिष की सार्थकता तभी सिद्ध हो सकती है जबकि उसके निष्कर्षों
पर किया गया फलित बिल्कुल ठीक व सही हो । ज्योतिष व ज्योतिषी की कसौटी या प्रसिद्धि का मुख्य आधार सही भविष्यवाणियाँ है। सही फलादेश की प्राप्ति हेतु ही व्यक्ति नाना प्रकार की गणित प्रणालियों एवं गणकों की शरण में जाता है ।
वास्तव में देखा जाये तो फलित ज्योतिष ही गणित (सिद्धान्त) पक्ष को पुष्टि पल्लवित रखने में सहायक है। यदि ज्योतिष-संसार से फलित विभाग को निकाल
दिया जाय तो ज्योतिष का आस्तित्व उसकी उपादेयता तत्क्षण ही समाप्त हो
जाती है ।
एक ही वस्तु का फलादेश प्राप्त करने हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार की गणित प्रणालियाँ प्रचलित है। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति के आयु निर्धारण हेतु विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, योगिनी, जैमिनी पद्धति, जातक पद्धति, गोचर पद्धति, ताजिक पद्धति, नाक्षत्र पद्धति इत्यादि अनेकों प्रकार की गणित प्रतिक्रियाएँ करनी पड़ती हैं | सब प्रतिक्रियाएँ एक-दूसरे से विपरीत हैं तथा उनके परिणाम भी भिन्न-भिन्न आते हैं। ज्योतिषी अपने ज्ञान व अनुभव के आधार पर विशेष प्रकार के जातक पर विशेष प्रकार की प्रणाली के सूत्रों का प्रयोग कर फलकथन का प्रयास करता है । फलित ज्योतिष तो अनुभव के आधार पर ही प्रस्फुटित होता है तथा अपने अनुभव सूत्रों के माध्यम से ज्योतिषी एक के बाद एक भविष्यवाणी करता जाता है । यद्यपि पूर्ण सत्य तो सर्वज्ञ ईश्वर ही जानता है तथापि अपने अनुभवजन्य ज्ञान एवं अनुसंधान के आधार पर की गई भविष्यवाणी के सफल होने पर ज्योतिष को एक विशेष प्रकार का बल, एक विशेष प्रकार की शक्ति एवं एक विशेष प्रकार की ईश्वरीय प्रेरणा, अनुकम्पा, प्रसन्नता, प्रफुल्लता का आभास होता है । एक कहावत प्रसिद्ध है ‘त्रुटि ज्ञान की पहली शिक्षा है’ । आज विश्व के लोग ‘राईट बन्धुओं’ को इस कारण याद नहीं करते कि उन्होंने हवाईजहाज़ का सर्वप्रथम ज्योतिष – सम्पूर्ण ज्ञान